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Friday, 29 June 2012

Bewafaiyan mujhase

फितरतन वो कर गए बेवफाइयां मुझसे
देकर कलम छीन ली रौशनाइयां मुझसे

जाने कैसे थे साये कैसे वो अँधेरे होंगे
अक्सर अंधेरों मे मिली परछाईयां मुझसे

खुद उठा के सर से लगा लेता हूँ पत्थर
पुराने दोस्तों सी मिली हैं रुस्वाइयाँ मुझसे

मैं चला हूँ कुछ दूर कुछ रास्ते भी चले हैं
कहाँ रहीं हैं मंजिल की आशनाईयां मुझसे

थाम ली है गिरते गिरते दिवार यादों की तेरी
तेरे बाद मिलतीं हैं तुझसी ही जुदाइयां मुझसे

सौदा साँसों का मुफ्त भी नहीं मंजूर उसे
बेचता हूँ ज़िन्दगी मिलती नहीं खुदाइयां मुझसे

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