फितरतन वो कर गए बेवफाइयां मुझसे
देकर कलम छीन ली रौशनाइयां मुझसे
जाने कैसे थे साये कैसे वो अँधेरे होंगे
अक्सर अंधेरों मे मिली परछाईयां मुझसे
खुद उठा के सर से लगा लेता हूँ पत्थर
पुराने दोस्तों सी मिली हैं रुस्वाइयाँ मुझसे
मैं चला हूँ कुछ दूर कुछ रास्ते भी चले हैं
कहाँ रहीं हैं मंजिल की आशनाईयां मुझसे
थाम ली है गिरते गिरते दिवार यादों की तेरी
तेरे बाद मिलतीं हैं तुझसी ही जुदाइयां मुझसे
सौदा साँसों का मुफ्त भी नहीं मंजूर उसे
बेचता हूँ ज़िन्दगी मिलती नहीं खुदाइयां मुझसे
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