Pages

Tuesday, 14 August 2012

मेरी तन्हईयॉ सुनो

पुकारती है तुम्को मेरी तन्हईयॉ सुनो

जहर सी बेह्ती हिज्र म॓ पूरवाईयॉ सुनो

छीनकर रोशनी आखो को रौशन किया

क्या यही है आस्मा कि खुदाईयॉ सुनो

ये क्या तर्ज है दर्द के ये गुफ्तगु कि

कहु गजल तो कहे आह कि रुबाईयॉ सुनो

गुलाबो का रंग बिखरा पडा है हर सिम्त

थी इनको भी कुछ आप से आशनाईयॉ सुनो

बिन तेरे बद्दुआ सी मिली है जिन्दगी

रगो मे नश्तर सी बही है दवाईयॉ सुनो

शर्म सी कटे है हर घडी  अब तो

जी रहे हो तो अब ये रुसवाईयॉ सुनो

No comments:

Post a Comment