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Sunday, 2 September 2012

मर्ज़ मिटाने की जिद

आज यूँ ही बैठे बिठाए, मेरी आँखें नम हो गयी

ख्याल जो आया कि आधी ज़िन्दगी खत्म हो गयी


दवा ढूंढ रहा हूँ जिसकी, उस मर्ज़ का तो पता नहीं

पर वो मर्ज़ मिटाने की जिद में, ये सांसें कम हो गयीं

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