कल कल करती नदी की धारा.
बही जा रही बढ़ी जा रही.
प्रगति पथ पर चढ़ी जा रही.
सबको जल ये दिये जा रही.
पथ न कोई रोक सके.
और न कोई टोक सके.
चट्टानों से टकराती है,
तूफानों से भीड़ जाती है.
रूकना इसे कब भाता है.
थकना इसे नहीं आता है.
सोद्देश्य स्व-पथ पर पल पल
बस आगे बढ़ती जाती है.
कल -कल करती जल की धारा.
जौहर अपना दिखलाती है.
बही जा रही बढ़ी जा रही.
प्रगति पथ पर चढ़ी जा रही.
सबको जल ये दिये जा रही.
पथ न कोई रोक सके.
और न कोई टोक सके.
चट्टानों से टकराती है,
तूफानों से भीड़ जाती है.
रूकना इसे कब भाता है.
थकना इसे नहीं आता है.
सोद्देश्य स्व-पथ पर पल पल
बस आगे बढ़ती जाती है.
कल -कल करती जल की धारा.
जौहर अपना दिखलाती है.
No comments:
Post a Comment