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Saturday, 7 July 2012

सच का सामना

सच
जिसकी खोज में
निकला था मैं
सोचा सच तो सच ही है
उसे क्या होगा किसी से डर
वह तो होगा एकदम निडर
बैठा होगा किसी
ऊँचे सिहांसन पर
दे रहा होगा
अपने नाम की दुहाई
किन्तु आश्चर्य !
मैंने देखा यहाँ अपने अपनों को लूट रहे हैं
संत बन बुराइयों का सहारा
ले बाँट भभूत रहे
मैंने सच से पूछा
क्या बात है भाई
कहाँ गयी तुम्हारी
सच्चाई
तुमने तो भर गर्मी में ओढ़ रखी है रजाई
सहमे हुए मन से सच ने
अपना मुंह खोला
और मिमियाते हुये बोला
यह सब
कलयुग की महिमा है भाई
भगवान ने भी
यहाँ है कसम खाई
इसलिए तो महात्मा
घूम रहे सड़कों पर
और यहाँ
राज कर रहे कसाई !

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