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Saturday 7 July 2012

क्यों कह रहा है इंसान

जिन्दा रहकर भी खुसबू बिखेरते हैं फूल,
मरकर भी खुसबू बिखेरतें हैं फूल.

जिन्दा रहकर भी काम में आते हैं जानवर,
मरकर भी काम में आते हैं जानवर.

जिन्दा रहकर भी दुःख दे रहा है इंसान,
और - मरकर भी इसी काम में लगा है -इंसान.

यह क्या कह रहा है इंसान?
अपने अस्तित्व को जिन्दा रख कर शेष सबको
मिटा देना चाहता है इंसान.
ऐसा क्यों कर रहा है इंसान?
नाम का इंसान, काम से हैवान.

क्या कभी दूसरों का अस्तित्व मिटाकर,
अपना अस्तित्व बच पाया है ?
कांटे बोकर भला किसने चमन खिलाया है.
नादान इंसान, दे रहा है --कमअकली का प्रमाण.

नफरत की आग में जलकर यह जुल्म कर रहा है इंसान.
मगर फिर भी -- क्यों कह रहा है इंसान?
मैं सब योनियों से श्रेष्ठ, दुर्लभ गुणों की खान,
मैं हूँ इंसान, सर्वश्रेष्ठ इंसान!

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