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Friday, 24 August 2012

आँखें

सावन था बहुत ज़्यादा फिर कैसे जली आँखें
आँखों में पले आँसू आँसू में पली आँखें

वो सामने है मेरे ना ये ऐतबार आया
छू के उसे देखा कभी अपनी मली आँखें

वो छोड के गया जब मैं घर को आ गया तब
तलशे यार में भटकी पर हर गली आँखें

है ये उन दीनो की बातें जब प्यार ना हुआ था
भोला सा था चेहरा थीं कितनी भली आँखें

सौ बार ये कहा था मेरे ख्वाब ना भरो तुम
तुम ने बिगाड़ ली हैं ये अच्छी भली आँखें

लोगों ने ये भी देखा फिर राज़ क्यों ना जाना
जब चिता जल रही थी ना साथ जली आँखें

इक रात ऐसी गुज़री वो ख्वाब में ना आए
इक आग सी लगी थी शब भर जली आँखें

रुक जाता हूँ मैं अक्सर थकती नही ये लेकिन
मुझ से हमेशा आगे हर सफ़र चली आँखें

जब सब कुछ मिट गया है तू सामने क्यों आया
मेरी ये जली आँखें तेरी भी जली आँखें

जब भी उसे देखा दिल की नज़र से देखा
वो तब भी नज़र आया जब मेरी ढली आँखें

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