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Friday, 24 August 2012

सीमाएँ ज़रूरी हैं

मैं हमेशा तुम से कहता रहा कि ,
सीमाएँ ज़रूरी हैं हर एक जगह
जब तक किनारों से बँधकर रहती है
गंगा जीवनदायिनी कहलाती है
जब किनारे तोड़कर चल पड़ती है
जीवनदायिनी भी भयावह बन जाती है
तुमने भी तो मुझे टूटकर प्यार किया था
सारे बंधन सारी सीमों को दरकिनार किया था
मैं शिव नहीं था ना ही बन पाया
नहीं संभाल पाया तुमहरे प्यार की गंगा को
बहता रहा , ना डूब पाया ना निकल पाया
अचानक मैं उसमें अपना वजूद तलाशने लगा
और मेरा अहम मुझे कचोटने लगा
फिर उस धारा को बाँधने की कोशिश करने लगा
पर मैं ना बाँध पाया तुम्हारे प्यार की धारा को
और खुद की अशक्षमता का दोष तुम्हें देने लगा
आज मैं और मेरा मैं किनारे पे बैठे ,
इठलाती लहरों को देखते ये सोच रहे हैं,
की तुम तो अंततः सागर से मिल ही जाओगी
क्या मेरे लिए फिर से कोई गंगा उतार कर आएगी ?

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