पुकारती है तुम्को मेरी तन्हईयॉ सुनो
जहर सी बेह्ती हिज्र म॓ पूरवाईयॉ सुनो
छीनकर रोशनी आखो को रौशन किया
क्या यही है आस्मा कि खुदाईयॉ सुनो
ये क्या तर्ज है दर्द के ये गुफ्तगु कि
कहु गजल तो कहे आह कि रुबाईयॉ सुनो
गुलाबो का रंग बिखरा पडा है हर सिम्त
थी इनको भी कुछ आप से आशनाईयॉ सुनो
बिन तेरे बद्दुआ सी मिली है जिन्दगी
रगो मे नश्तर सी बही है दवाईयॉ सुनो
शर्म सी कटे है हर घडी अब तो
जी रहे हो तो अब ये रुसवाईयॉ सुनो
जहर सी बेह्ती हिज्र म॓ पूरवाईयॉ सुनो
छीनकर रोशनी आखो को रौशन किया
क्या यही है आस्मा कि खुदाईयॉ सुनो
ये क्या तर्ज है दर्द के ये गुफ्तगु कि
कहु गजल तो कहे आह कि रुबाईयॉ सुनो
गुलाबो का रंग बिखरा पडा है हर सिम्त
थी इनको भी कुछ आप से आशनाईयॉ सुनो
बिन तेरे बद्दुआ सी मिली है जिन्दगी
रगो मे नश्तर सी बही है दवाईयॉ सुनो
शर्म सी कटे है हर घडी अब तो
जी रहे हो तो अब ये रुसवाईयॉ सुनो
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