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Tuesday, 14 August 2012

सोचते और जागते

सोचते और जागते गुज़र गयी है जिन्दगी अपनी

एक सवाल सी मिली है अक्सर जिन्दगी अपनी

ये बात नही की मै कुछ नही केह सका उन से

मुहोब्बत बन चुकी थी अब यारो बेबसी अपनी

मै ज़ख्म खाता रहा और वो तिर चलाते रहे

ना मै हटा ना उन्हो ने छोडी दिल्लगी अपनी

सुना है कारगर हुई है उनपर किसी कि बेबाकी

काम ना आ सकी उन पर ये सादगी अपनी

वफाऐ मेरी मुझे जन्नत तक कल ले गई थी

घबरा गयी थी वहा ये दिल की सादगी अपनी

आओ अगर अबके तो मेरा दिल भी जरा लेआना

देखे तो जरा कितनी बढी है इन दिनॉ आशिकी अपनी

गिला तुझ से तेरी वफाओ का हम क्या करते
अब तो चान्द ने भी समेट ली है चान्दनी अपनी

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