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Tuesday, 14 August 2012

सर्दी फिर आज

सर्दी फिर आज गुलाबी है
क्या
 फिर से प्यार हुआ मुझको

पीली सरसों के आँचल सी 
फैली है महक तेरी साँसों की
कानों में शहद है घोल रही
स्वर लहरी मीठी बतियों की
विस्मय से हर्षित मेरे नयन 
झरते हैं ओस की बूंदों को

सर्दी फिर आज …..
शीतल है पवन शीतल है मन 
ऋतुराज विराजे घर आंगन
फिरता हूँ तुझको साथ लिए
कोहरे में सिमटे वन उपवन
सोंधी माटी में पत्तों की
खुशबू मचले है बसने को

सर्दी फिर आज
आज भी याद है वो सर्दी
सिमटे थे शाल सी बाँहों में 
चटख  हुई धूप की नरमी भी
पसरी थी हरे मैदानों में

अंखियों
 से अंखियाँ बंधी हुई

हिम
 ने था समेटा सरिता को

सर्दी फिर आज…..
उड़ते बादल थे थम से गये
नीलाभ हुआ विस्तृत अंबर
गर्वीले पर्वत झुक से गये
सांझी थे मेरे देवदार  
अधरों  से अधर जब आन मिले
तड़प थी सुर्ख गुलाबों को 

सर्दी फिर आज…..
खोया हूँ आज भी उस  मंज़र
कैसे भूलूँ वो प्रेम डगर
थाम के हाथ तेरा जिस पर
शुरू हुआ जीवन का सफर
बंधे हैं जो विश्वास के तार
ले जाएंगे वैतरणी पार
चलता चल साथी साथ मेरे
क्षितिज पे भोर है आने को
 
सर्दी फिर आज गुलाबी है
क्या फिर से प्यार हुआ मुझको

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