सर्दी फिर आज गुलाबी है
क्या फिर से प्यार हुआ मुझको
पीली सरसों के आँचल सी
फैली है महक तेरी साँसों की
कानों में शहद है घोल रही
स्वर लहरी मीठी बतियों की
विस्मय से हर्षित मेरे नयन
झरते हैं ओस की बूंदों को
सर्दी फिर आज …..शीतल है पवन शीतल है मन
ऋतुराज विराजे घर आंगन
फिरता हूँ तुझको साथ लिए
कोहरे में सिमटे वन उपवन
सोंधी माटी में पत्तों की
खुशबू मचले है बसने को
सर्दी फिर आज…आज भी याद है वो सर्दी
सिमटे थे शाल सी बाँहों में
चटखी हुई धूप की नरमी भी
पसरी थी हरे मैदानों में
अंखियों से अंखियाँ बंधी हुई
हिम ने था समेटा सरिता को
सर्दी फिर आज…..उड़ते बादल थे थम से गये
नीलाभ हुआ विस्तृत अंबर
गर्वीले पर्वत झुक से गये
सांझी थे मेरे देवदार व फर
अधरों से अधर जब आन मिले
तड़पन थी सुर्ख गुलाबों को
सर्दी फिर आज…..खोया हूँ आज भी उस मंज़र
कैसे भूलूँ वो प्रेम डगर
थाम के हाथ तेरा जिस पर
शुरू हुआ जीवन का सफर
बंधे हैं जो विश्वास के तार
ले जाएंगे वैतरणी पार
चलता चल साथी साथ मेरे
क्षितिज पे भोर है आने को सर्दी फिर आज गुलाबी है
क्या फिर से प्यार हुआ मुझको
क्या फिर से प्यार हुआ मुझको
पीली सरसों के आँचल सी
फैली है महक तेरी साँसों की
कानों में शहद है घोल रही
स्वर लहरी मीठी बतियों की
विस्मय से हर्षित मेरे नयन
झरते हैं ओस की बूंदों को
सर्दी फिर आज …..शीतल है पवन शीतल है मन
ऋतुराज विराजे घर आंगन
फिरता हूँ तुझको साथ लिए
कोहरे में सिमटे वन उपवन
सोंधी माटी में पत्तों की
खुशबू मचले है बसने को
सर्दी फिर आज…आज भी याद है वो सर्दी
सिमटे थे शाल सी बाँहों में
चटखी हुई धूप की नरमी भी
पसरी थी हरे मैदानों में
अंखियों से अंखियाँ बंधी हुई
हिम ने था समेटा सरिता को
सर्दी फिर आज…..उड़ते बादल थे थम से गये
नीलाभ हुआ विस्तृत अंबर
गर्वीले पर्वत झुक से गये
सांझी थे मेरे देवदार व फर
अधरों से अधर जब आन मिले
तड़पन थी सुर्ख गुलाबों को
सर्दी फिर आज…..खोया हूँ आज भी उस मंज़र
कैसे भूलूँ वो प्रेम डगर
थाम के हाथ तेरा जिस पर
शुरू हुआ जीवन का सफर
बंधे हैं जो विश्वास के तार
ले जाएंगे वैतरणी पार
चलता चल साथी साथ मेरे
क्षितिज पे भोर है आने को सर्दी फिर आज गुलाबी है
क्या फिर से प्यार हुआ मुझको
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