इतवार की शाम की वो आहट, कमबख्त दिन का ढल जाना
तेरे क़दमों का रुख पलटकर, मुझसे दूर की ओर हो जाना
तेरा आँखें मूँद लेना, अपनी गर्दन झुका के उदासी को छिपाना
कभी मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर, चुप बैठे होठों से लगाना
पैरों की उँगलियों से फर्श पे मेरा नाम लिखना, झूठा सा मुस्कुराना
"फिर कब मिलेंगे" ये पूछती पलकों में तेरा आंसुओं को छिपाना
कहीं रो न दो इस डर से लफ़्ज़ों को सताना, फिर मुड के चले जाना
दो कदम चल के रुकना, फिर पलटकर मेरे सीने से चिपक जाना
जुदाई के लम्हों का धीरे से पास आना, यूँ मेरे दिल का ठहर जाना
बर्दाश्त नहीं होता मुझसे अब, तेरा इस तरह मुझसे दूर चले जाना
No comments:
Post a Comment