अपने हिस्से का आसमान तलाशता, वो पंखहीन बेबस परिंदा
डर डर कर सांसें लेता, सागर किनारे बना वो मिटटी का घरोंदा
रास्ते का वो कंकर, जो ठोकरें खा खा कर आ गया है जाने कहाँ
किसी मूक व्यक्तित्व के वो खामोश शब्द, जो कभी न हुए बयाँ
जो कली खिली शमशानों में, जो शमा तन्हा जली वीरानों में
जो जाम प्यासे लबों को छूने से पहले ही, टूट गए मैखानों में
गुलाब की वो पंखुड़ी, जिसे एक गुमनाम लाश मिली गले लगाने को
बारिश की वो बूँद, जिसे गर्म रेगिस्तान की गोद मिली सो जाने को
वो सल्तनतों के बे-ताज हुए शहंशाह, वो सनम जिसे चाहत न मिली
वो पथिक जो मंजिल पे न पहुंचा, वो रूह जिसे कभी राहत न मिली
ये सब जीवन व्यर्थ हुए क्यूंकि, कभी किस्मत से इनके हाथ न मिले
कश्ती साहिल पे पहुँच ही नही सकती, जब तक उसे लहरों का साथ न मिले
No comments:
Post a Comment