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Sunday, 2 September 2012

"हुस्न" है वो...


अमियाँ के बागीचों में, जो सुरीली कोयल गाती है
मेरे घर के ठीक  सामने, एक नदी जो खिलखिलाती है
सुबह सवेरे आँगन में, मीठी सी धुप जो आती है
हर एक हसीं ये चीज़  मुझे, अब उसकी याद दिलाती है
सावन का दिल रिझाने को, ज्यूँ पुरवाई इठलाती है
कमसिन लहरें ज्यूँ सागर की, बाहों में बल खाती है
चांदनी गोद में सर रख कर ज्यूँ रात कोई इतराती है
मेरे सपनों में वो त्यूं ही, अपना दामन लहराती है 
रंगरेज़ कुदरत खुद उसकी, रंगत को देख चकराती है
खुदा भी है आशिक उसका, जिस अदा से वो मुस्काती है
एक धीमी सी आहट उसकी, पत्थर को मोम बनाती है
हया दबा होठों के तले, वो पानी में आग लगाती है
भंवरों को कर देती पागल, फूलों को जो महकाती है
वो जादूगरनी है कौन भला, वो कौन देश से आती है
हर शाम मुंडेरों पे बैठी दो सुन्दर चिड़ियाएं बतियाती है
जो पूंछो उनसे "हुस्न" है क्या, उसका ही नाम बताती है

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