हंसी खुशी ,रिश्ते नाते ,एहसास दोस्ती से मिल कर बनी कविता हूँ मैं ,
जो अपनी होकर भी , बुरी लगे , एक ऎसी ही अजीब दुविधा हूँ मैं ,
अशोक के गर्म खून सी, बौध्द शान्ति में पली , गुमनाम संगमित्रा हूँ मैं ,
शब्द से निर्मित हूँ , शब्द अन्त है मेरा ,
मुक्त छोड दो तो खो जाती हूँ , हर बार बाधंनी जो पडे , एक ऎसी भुमिका हुँ मैं ।
हुनर जिसका भीड में नजर आता है , वो एक छोटी सी कणिका हूँ मैं ।
जिसके दामन में अश्क गिर के सोते है ,शायद ऎसी एक अंकिता हूँ मैं ।
जिन्दगी के रंगो से भरी , जख्मो से हर बार सजी ,
खुद से मिल खुद खो जाने वाली , एक अनजान चित्रा हूँ मैं ।
जो अपनी होकर भी , बुरी लगे , एक ऎसी ही अजीब दुविधा हूँ मैं ,
अशोक के गर्म खून सी, बौध्द शान्ति में पली , गुमनाम संगमित्रा हूँ मैं ,
शब्द से निर्मित हूँ , शब्द अन्त है मेरा ,
मुक्त छोड दो तो खो जाती हूँ , हर बार बाधंनी जो पडे , एक ऎसी भुमिका हुँ मैं ।
हुनर जिसका भीड में नजर आता है , वो एक छोटी सी कणिका हूँ मैं ।
जिसके दामन में अश्क गिर के सोते है ,शायद ऎसी एक अंकिता हूँ मैं ।
जिन्दगी के रंगो से भरी , जख्मो से हर बार सजी ,
खुद से मिल खुद खो जाने वाली , एक अनजान चित्रा हूँ मैं ।
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